संचार की प्रक्रिया (COMMUNICATION PROCESS)
संचार प्राणवायु की तरह है, इसके बिना मानव का जिंदा रहना संभव नहीं है। आदिकाल से ही संचार की प्रक्रिया सतत चली आ रही है। हालांकि आज के समय में संचार के नए-नए माध्यम आ जाने से संचार की प्रक्रिया में तेजी आई है, लेकिन आधुनिक संचार माध्यमों में भी संचार प्रक्रिया का सैद्धांतिक रुप एक जैसा ही है।
संचार प्रक्रिया को हम चार भागों में बांटते है-
1. पहली प्रक्रिया : संचार की इस प्रक्रिया में मुख्य रूप से संचार के 3 तत्व भाग लेते हैं- 1. संचारक 2.संदेश 3.प्रापक। इसमें संचारक यानी संदेश भेजने वाला द्वारा सम्प्रेषित संदेश सीधे प्रापक यानी संदेश प्राप्त करने वाला तक पहुंचता है।
– संचार की इस प्रक्रिया को ONE-WAY-COMMUNICATION(एक मार्गीय संचार) भी कहते हैं।
उपर बनाये गए तस्वीर से यहा साफ है कि संचार की इस प्रक्रिया में संचारक और प्रापक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। संचार तभी प्रभावी या सार्थक होगा, जब संचारक और प्रापक, मानसिक व भावनात्मक दृष्टि से एक ही धरातल पर हो तथा संचारक द्वारा भेजे गए संदेश के अर्थों को संदेश प्राप्त करने वाला समझता हो।
2. दूसरी प्रक्रिया : आइए अब जानते हैं कि संचार की दूसरी प्रक्रिया क्या है और इसमें कौन से तत्व भाग लेते हैं। संचार की इस प्रक्रिया के अंतर्गत् संचारक यानी संदेश भेजने वाला और प्रापक यानी संदेश को प्राप्त करने वाला दोनों क्रमश: एक-दूसरे की भूमिका निभाते हैं। अथार्त एक बार संचारक प्रापक बनता है तो एक बार प्रापक संचारक की भूमिका में होता है। इस प्रकार की प्रक्रिया से संचारक और प्रापक दोनों के मध्य एक पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित होता है।
संचार की यह प्रक्रिया TWO-WAY-COMMUNICATION (द्वि-मार्गीय संचार प्रक्रिया) भी कहलाती है।
उपर बनाई गई तस्वीर से यह स्पष्ट है कि संचार कि यह प्रक्रिया TWO WAY COMMUNICATION होने के कारण निरंतर चलती रहती है। इस प्रक्रिया में संचारक यानी संदेश भेजने वाले से संदेश ग्रहण करने के उपरांत प्रापक जैसे ही कुछ कहना शुरू करता है, वैसे ही संचारक की भूमिका में आ जाता है। उसकी बातों को सुनते समय संचारक की भूमिका बदलकर प्रापक जैसी हो जाती है।
3. तीसरी प्रक्रिया : संचार की इस आखिरी प्रक्रिया में संचारक यानी संदेश भेजने वाला यह निर्णय लेता है कि उसे कब, क्या, किसे और किस माध्यम (Channel) से भेजना है। दूसरे शब्दों में संचारक संदेश भेजने के लिए संचार माध्यम का चयन करता है।
उपर बनाई गई तस्वीर से यह स्पष्ट है कि संचारक अपने संदेश और प्रापक की स्थिति के अनुसार संचार माध्यम का चुनाव करता है। संचारक अपने संदेश को बोलकर, लिखकर, रेखाचित्र बनाकर या शारीरिक क्रिया द्वारा सम्प्रेषित कर सकता है। संदेश प्राप्त करने वाला सुनकर, पढक़र, देखकर या छूकर संदेश को प्राप्त कर सकता है।
चौथी प्रक्रिया : संचार की इस प्रक्रिया में प्रतिक्रिया (FEEDBACK) का काफी महत्व है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत संदेश प्राप्त करने वाला संचार के संदेश को ग्रहण करने के बाद उसे समझता है। समझने के बाद प्रापक बोलकर, लिखकर या अपनी भाव-भंगिमाओं से प्रतिक्रिया (Feedback) व्यक्त करता है।
उपर बनाए गए तस्वीर से यह स्पष्ट है कि संचार प्रक्रिया के दौरान प्रापक से फीडबैक प्राप्त करते हुए एक कुशल संचारक अपनी बात को आगे बढ़ाता है तथा संदेश में आवश्यकतानुसार बदलाव भी करता है। फीडबैक न मिलने की स्थिति में संचारक का उद्देश्य अधूरा रह जाता है।
पांचवी प्रक्रिया : संचार की इस प्रक्रिया में संदेश भेजने वाला अपने संदेश को गुप्त भाषा में कूट (Encode) करता है और किसी माध्यम से सम्प्रेषित करता है। प्रापक संदेश को प्राप्त करने के बाद गुप्त भाषा को समझ (Decode) लेता है तथा अपना फीडबैक व्यक्त कर देता है, तो संचार प्रक्रिया पूरी हो जाती है। इस प्रक्रिया में कई तरह की बाधाएं आती है, जिससे संदेश कमजोर, विकृत और अप्रभावी हो जाता है।
उपरोक्त रेखाचित्र में संचारक (Encoder) वह व्यक्ति है जो संचार प्रक्रिया को प्रारंभ करता है। संदेश शाब्दिक और अशाब्दिक दोनों तरह का हो सकता है। किसी माध्यम से संदेश प्रापक तक पहुंचता है। प्रापक संदेश को प्राप्त करने के बाद व्याख्या (Decode) करता है, फिर प्रतिक्रिया (Feecback) व्यक्त करता है। तब प्रापक ष्ठद्गष्शस्रद्गह्म् कहलाता है। इस प्रक्रिया में कुछ बाधा (Noise) उत्पन्न होती है, जिससे संचार का प्रवाह/प्रभाव कम हो जाता है।

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